काँकरा वाळी जगाँ का बीज वणा मनकाँ का जस्यान हे के, जद्याँ वी हुणे, तो वी आणन्द का हाते परमेसर की वाणी ने माने हे। पण वीं जड़ ने पकड़वा का मस थोड़ीक दाण विस्वास करे हे अन परक की दाण वी भाग जावे हे।
काँके ज्यो काम नेम मनकाँ का पापी हाव-भाव का मस कमजोर वेन ने कर सक्या, वो काम परमेसर किदो, मतलब ओ के, परमेसर आपणाँ बेटा ने आपणी जस्यान पाप की देह में आपणाँ पाप का वाते बली वेबा का वाते खन्दायो। जणीऊँ वो पापी देह में पाप ने दण्ड दिदो।
थाँ कदी भी अस्यी परिकसा में ने नाक्या जावो ज्याँ थाँके सेण करबाऊँ बारणे हे। परमेसर तो हाँचा हे। वीं थाँने थाँकी सेण करबा की तागतऊँ हेला परकबा ने देई अन थाँने परिकसा का हाते वणीऊँ बंचबा को गेलो भी बताई ताँके थाँ वींने सेण कर सको।
पण मूँ आपणी देह ने घणी मेनत करान खुद का क्या में राकूँ हूँ, ताँके कटे अस्यान ने वे जावे के, दूजाँ का उपदेस देयाँ केड़े मूँ परमेसर का आड़ीऊँ बेकार मान्यो जाऊँ।
“हूँस्यार रेज्यो! काँके मूँ चोर की जस्यान अणाचेत को आऊँ हूँ। धन्न हे वीं ज्यो जागता रेवे हे, अन आपणाँ गाबा हमाळी राके हे, जणीऊँ वीं उगाड़ा ने रेई अन मनक वाँने नांगा ने देकी।”