काँके मूँ थाँकाऊँ केवूँ हूँ के, यो ज्यो सास्तर में लिक्यो हे के, ‘वो अपरादिया का हाते गण्यो ग्यो।’ या बात मारा में पुरी वेणी घणी जरूरी हे, काँके अबे ईं बात के वेबा की टेम आगी हे।”
“मूँ थाँने सान्ती देन जारियो हूँ, आपणी खुद की सान्ती थाँने देवूँ हूँ। दनियाँ देवे हे वस्यान मूँ थाँने ने देवूँ हूँ। थाँको मन दकी ने वेवे अन ने थाँ दरपे।
तो एक ओरी घोड़ो निकळ्यो वींको लाल रंग हो अन वींके ऊपरे जो सवार हो, वींने ओ हक दिदो ग्यो हो के, वो धरती पे मनकाँ में एक-दूँजा की हत्या करावे अन वाँकी सक सान्ती लिले। वींने एक तरवार भी दिदी गी ही।