23 वीं दन सदुकी मनक ज्यो केता हाँ के, मरिया तका को पाछो जीवणो ने वे सके हे। वीं ईसू का नके आया अन वाँकाऊँ पूँछ्यो,
ईसू वाँने क्यो, “देको, फरीसियाँ अन सदुकियाँ का हाज्याऊँ बंचन रेज्यो।”
जद्याँ यहुन्ने यो देक्यो के, नरई फरीसी अन सदुकी वाँका नके बतिस्मो लेबा ने आरिया हे तो वणी वाँकाऊँ क्यो, “ओ, हाँप का बच्या। थाँने कणी हेंचेत कर दिदा हे के, थाँ परमेसर की आबावाळी रीसऊँ बंच निकळो?
जद्याँ वीं दुई जणा लोगाऊँ बात-बच्यार कररिया हा, वीं दाण ईं याजक, मन्दर को मुक्यो अन सदुकी लोग वाँका नके आया
तो मोटो याजक अन वाँका हण्डाळी, जो सदुकी पन्त का हाँ, वे रिस्याँ बळबा लागा।
वणा अस्यान केन हाँच को गेलो छोड़ दिदो के, आपणाँ ने पाछो जीवन पेल्याँई मलग्यो हे, नरई विस्वास्याँ का विस्वास को नास कर देवे हे।