ईसू वींने क्यो, “कई थाँ पवितर सास्तर में ओ ने भण्यो के, “‘जणी भाटा ने राज कारीगर बेकार जाण्यो हो, वोईस खुणा को खास भाटो बणग्यो। ओ परबू का आड़ीऊँ व्यो, अन मारी नजर में मोटी बात वीं?’”
अन यद्याँ मूँ परमेसर की बाताँ भी बता सकूँ अन मूँ हारोई भेद भी खोल सकूँ, हारोई ग्यान भी जाण जऊँ अन मने अटे तईं विस्वास भी वे के, मूँ मंगरा ने भी हरका सकूँ हूँ, पण परेम ने करूँ, तो मूँ कई भी ने हूँ।
पण थाँ तो अस्या मनक कोयने हो, थाँ तो परमेसर का थरप्या तका मनक हो, थाँ रजवाड़ी याजकाँ की टोळी अन पुवितर परवार का हो, परमेसर थाँने अंदारा का राज मेंऊँ अचम्बावाळा उजिता में लाया हे, जणीऊँ थाँ परबू का अचम्बावाळा काम का बारा में बता सको।