37 अन्त में वणी आपणाँ एकाएक पूत ने वाँका नके ओ होचन खन्दायो के, ‘वीं मारा पूत को तो मान करी।’
पछे वणी पेल्याँऊँ भी हेला दासा ने खन्दाया, अन वणा वाँका हाते भी वस्यानीस किदो।
“पण वीं हिंजारिया वीं छोरा ने देकन एक-दूजाऊँ क्यो, ‘ओ तो ईं बाग का मालिक को छोरो हे ज्यो जगाँ-जादाद को वेबावाळो मालिक हे। आवो ईंने मार नाका अन ईंकी जगाँ-जादाद ले लेवा।’
तद्याँ आ आकासवाणी वी के, “यो मारो लाड़लो पूत हे, जणीऊँ मूँ घणो राजी हूँ।”
अबे तो वाँका नके वाँको एकाएक पूत बच्यो, ज्यो वींको लाड़लो पूत हो। पछे हाराई केड़े वींने अस्यान होचन वीं हिंजारिया नके खन्दायो के, वे मारा पूत को तो मान राकी।
तद्याँ बाग का मालिक क्यो, अबे मूँ कई करूँ? मूँ मारा लाड़ला बेटा ने खन्दाऊँ। वे सके के, वी वींको मान करी।”
परमेसर का कदी कणी दरसण ने किदा, बेस एकाएक बेटो ज्यो खुद परमेसर हे अन वाँका खोळा में हे, वणी वाँने आपणाँ पे परगट किदा।
में अणा बाताँ ने वेती तकी देकी अन गवई दूँ हूँ के, ‘ओईस परमेसर को पूत हे।’”
काँके परमेसर जगतऊँ अस्यान परेम किदो, वणा आपणाँ एकाएक पूत ने दे दिदो, ताँके ज्यो कुई वींपे विस्वास करे, वी नास ने वेई, पण अनंत जीवन पाई।