ईसू क्यो, “एक ओरी केणी हुणो। एक जमींदार हो, जणी अंगूरा को एक बाग लगायो, वींके च्यारूँमेर हड़ो किदो, वींमें रस को कुण्ड भी बणायो अन वींमें एक डागळो बणायो अन हिंजारिया ने हिजारे देन परोग्यो।
ओ अस्यानीस हे, जस्यान कुई मनक कस्यी यातरा पे जातो तको आपणाँ नोकराँ ने आपणो घर हूँप जावे, अन हारा ने न्यारो-न्यारो काम हूँप दे अन चोकीदार ने ओ हुकम दे के, वो जागतो रेवे।
कन थाँ वणा अठारा जणा का बारा में ज्याँका ऊपरे सिलोह को गुमट पड़्यो अन वीं दबन मरग्या, कई होचो हो के, वीं यरूसलेम में रेबावाळा हाराई मनकऊँ हेला पापी हा?
ईं वाते हो विस्वासी भायाँ विस्वास में बना आगा-पाछा व्या गाटा बण्या तका रेवो अन परबू को काम करबा वाते खुद ने त्यार राको, काँके थाँ तो जाणो हो के, परबू वाते किदो ग्यो काम बेकार ने वे जावे।