3 “पछे रोटा बणाबा की टेम में एक दूजाँ मनक ने बजार में फालतू ऊबा तको देक्यो।
वणी दानक्याँ ने एक चाँदी का सिक्का की दानकी पे आपणी बाग में काम करबा का वाते खन्दाया।
अन वणीऊँ क्यो, ‘थूँ भी मारा बाग में जा अन ज्यो कई थने हव लागी, थने देऊँ।’ अस्यान वो भी परोग्यो।
हवेर पेल्याँ नो बजी ही, जदी वाँकाणी वींने हूळी पे चड़ा दिदो हो।
जदी वींका मालिकाँ देक्यो के, आपणी कमई की आस जाती री, तो पोलुस अन सिलास ने पकड़न बजार का बंच में अदिकारियाँ का नके गड़ीन लाया।
ईं लोग-बाग नसा में कोयने हे जस्यान थाँ हमजरिया हो, अबाणू तो दन को पेलो पोर व्यो हे।
अन वाँ घर-घर फरन आपणो टेम बगाड़णो हिक जावे हे, अन अणीऊँ भी हेलो वाँ फोकट की बाताँ करणी अन दूजाँ का काम में टाँग अड़ाणी हिक जावे हे। जणा बाताँ का बारा में बात ने करणी छावे, वाँका बारा में बाताँ करे हे।
माँ यो ने छावाँ हाँ के, थाँ आळसी बण जावो, पण वाँके जस्यान चालो, जीं विस्वास अन धिज्या का हाते वणा चिजाँ ने पारिया हे, ज्याँको परमेसर वादो किदो हो।