18 “रामाह नगर में एक दुक भरी अवाज हुणई गी, अवाज रोणो-धोणो अन हाका-भार की ही, राएल आपणाँ बाळकाँ का वाते रोरी ही, अन छानी भी ने रेणी छारी ही, काँके वींका हाराई बाळक अबे ने रिया हा।”
तो में आकास में एक बाज ने उड़तो तको देक्यो अन वो जोरकी अवाज में बोलरियो हा के, “आलतरे तो तीन हरग दुताँ को रणभेरी बजाणी बाकी हे, ईं वाते धरती पे रेबावाळा मनकाँ ने कतरो दुक वेई, कतरो दुक वेई।”