10 वीं तारा ने देकन घणा राजी व्या।
वीं वणी घरे ग्या, जटे बाळक ने वींकी बई मरियम की लारे देक्यो अन गोडा टेकन वींको नमस्कार किदो। आपणी–आपणी जोळ्या खोलन वींने होना, लोबान अन अंतर भेंट किदा।
वीं राजा की बात हुणन पराग्या अन ज्यो तारो वाँने उगमणी दिसा में दिक्यो, वो भी वाँकी लारे-लारे चालबा लागो अन जटे बाळक हो, वटे पोछन ढबग्यो।
तद्याँ हरग-दुत वाँकाऊँ क्यो, “दरपो मती अन देको। मूँ थाँका वाते हव हमच्यार लायो हूँ, जणीऊँ हारी मनक जात घणी राजी वे जाई।
गवाळ्याँ ने जस्यान क्यो ग्यो हो वीं वस्यानीस देकन परमेसर का गुणगान गाता तका अन बड़ई करता तका आपणाँ घरे पराग्या।