अन वाँ मनगड़त केण्याँ अन वंसावल्या पे मन ने लगावे, ज्यो लड़ई-जगड़ो करावे हे अन परमेसर की वीं मरजी ने पुरी ने वेवा देवे हे, ज्या खाली विस्वासऊँ पुरी वे सके हे।
अलग अलग तरियाँ का अणजाणी हिकऊँ भटको मती, काँके थाँका मन का वाते यो हव के, वो खाबा-पिबा की नेमा का बजाए दयाऊँ मजबूत बणे। अन जणा खाबा-पिबा का नेमाने मान्याँ वणाऊँ वाँको कदी भलो कोनी व्यो।
मूँ यहुन्नो हरेक ने, ज्यो ईं किताब की आगेवाणी की बाताँ लिकी हे वाँके बारे में गवई दूँ के, यद्याँ कुई मनक अणा बाताँ में कई बड़ावे, तो परमेसर वणा विपत्याँ ने ज्यो अणी किताब में लिकी तकी हे, वींपे बड़ाई।