5 पण थाँ लोगाँ ने हिकावो हे के, यद्याँ थाँका बई-बापू थाँकाऊँ कई मांगे तो थाँ वाँकाऊँ केज्यो के, ‘वा तो में परमेसर के चड़ा दिदी हे।’
काँके परमेसर क्यो, ‘आपणाँ बई-बापू को मान राकज्ये’, अन ‘ज्यो कुई बाप कन बई ने बुरो केवे, वीं मोत का घाट ऊतारिया जावे।’
ईं बात की वजेऊँ वणी मनक ने आपणाँ बई-बापू की सेवा करबा की जरुरत ने हे। अस्यान करन थाँ आपणाँ रिति-रिवाजऊँ परमेसर की आग्या ने टाळ देवो हो।
पण, पतरस अन यहुन्ने जबाव दिदो, “थाँईस बतावो, परमेसर का हामे हव कई हे? माँ परमेसर की हुणा कन थाँकी हुणा।
पतरस अन थरप्या तका जबाव दिदो, “आपणाँ ने मनकाँ की ने, पण परमेसर की आग्या मानणी छावे।