37 ईं तरिया हाराई मनक खाणो खान धापग्याँ अन पछे बंची तकी रोट्याँ ने भेळी करन हात ठोपला भरिया।
चेला वींने क्यो, “माँने ईं हुन्ना कांकड़ में कटूँऊँ अतरी रोट्याँ मली के, माँ अतरी मनकाँ ने धपावा?”
खाबावाळी लुगायाँ अन छोरा-छोरी ने छोड़न च्यार हजार मनक हा।
वणी भूका ने हव चिजाँऊँ भर दिदा अन रिप्यावाळा ने खाली हाताई काड़ दिदा।
पण, वींका चेला रात नेई वींने लेन, ठोपली में बेठाण नगर की बारली भींतऊँ लटकान वींने रेटे उतार दिदो।