ईसू वाँने क्यो, “थाँका कम विस्वास की वजेऊँ। मूँ थाँकाऊँ हाचेई केवूँ हूँ, यद्याँ थाँको विस्वास हरूँ का दाणा का जतरोक भी वेतो, तो ईं मंगराऊँ केता के, ‘अटूऊँ हरकन वटे जातो रे, तो वो जातो रेई।’ कुई बात थाँका वाते अबकी ने वेई।
ईं वाते जद्याँ परमेसर छापेड़ा की चुंटी ने, ज्यो अबाणू हे, अन काले वादी में बाळी जई, वींने अतरी हव बणावे हे, तो हो कम विस्वासवाळा, कई थाँने हव गाबा ने पेराई?
मूँ थाँने हाँची केऊँ हूँ, जदी कुई मंगरा ने ओ केवे के, ‘थूँ अटूँ उखड़न समन्द में जान पड़जा’ अन वींका मन में कस्यो भेंम ने वे अन परमेसर पे विस्वास राके, तो जस्यान वो केवे वस्यानीस वे जाई अन वींका वाते वस्योई वे जाई।