35 अन वणी वादळा मेंऊँ आ वाणी वी के, “यो मारो बेटो हे अन मारो चुण्यो तको हे, ईंकी हुणो।”
“देको, यो मारो दास हे, जिंने में थरप्यो हे, मारो लाड़लो हे, जणीऊँ मूँ घणो राजी हूँ। मूँ मारी आत्मा वींमें राकूँ अन वो हाराई मनकाँ को न्याव करी।
तद्याँ आ आकासवाणी वी के, “यो मारो लाड़लो पूत हे, जणीऊँ मूँ घणो राजी हूँ।”
पछे हरगऊँ अवाज अई के, “थूँ मारो लाड़लो बेटो हे अन मूँ थाँराऊँ घणो राजी हूँ।”
अन पुवितर आत्मा परेवड़ा का जस्यान रूप में आन वाँका ऊपरे उतरी। अन आकासवाणी वींके, “थूँ मारो लाड़लो पूत हे, मूँ थाँराऊँ घणो राजी हूँ।”
वो यो केईस रियो हो, एक वादळा की छाया वाँका पे आगी अन ज्यूँई आको वादळो वाँका पे आग्यो तो वीं दरपग्या।
हो बापू, थाँका नाम की मेमा बतावो।” तद्याँ हरग या अवाज अई, “में मारी मेमा बतई हे अन ओरू भी बताऊँ।”
काँके परमेसर जगतऊँ अस्यान परेम किदो, वणा आपणाँ एकाएक पूत ने दे दिदो, ताँके ज्यो कुई वींपे विस्वास करे, वी नास ने वेई, पण अनंत जीवन पाई।
तो पछे आपाँ कस्यान बंच सका? यद्याँ आपाँ ईं मान छुटकाराऊँ बेपरवा वेवा। ईं छूटकारा को पेलो हमच्यार परबू का आड़ीऊँ दिदो ग्यो अन जणा ईं हेला ने हुण्यो, वाँने ईंने आपणाँ वाते ईंने हाँचो साबत किदो हे।
जस्यान क्यो भी ग्यो हे के, “यद्याँ आज थाँ परमेसर की अवाज हुणो, तो आपणाँ मन ने गाटो मती करज्यो, जस्यान बगावत की टेम में किदो हो।”
अन एक दन पाको बणन वाँ हाराई का वाते ज्यो वींकी आग्या को पालण करे हे, वो वाँके अनंत छुटकारो को गेलो बणग्यो।