23 पछे ईसू वणा हाराऊँ क्यो, “यद्याँ कुई मारा पाच्छे आणो छावे हे, तो वो आपणाँ खुद ने नकारे अन हरेक दन आपणी हूळी उठातो तको मारा पाच्छे चाले।
काँके यद्याँ थाँ देह जस्यान जीवो, तो मरो, पण यद्याँ थाँ आत्मा का जस्यान देह की मरजी ने मार देवो, तो थाँ जीवता जीवो।
ईं वाते थाँ कुकरम, हूँगला पणो, बुरी वासना, हुगली मरजी, लोब-लाळच ज्यो मूरत पुजा का जस्यान को हे, अस्यान का दनियादारी का गुण ने आपणाँ मेंऊँ मार दो।
ज्यो भी मनक ईसू मसी का गट-जोड़ में खरो जीवन जीवणो छावे हे, तो वींने दुक देकणो पड़े हे।
या करपा आपाँने हिकावे हे के, आपीं बना भगती अन दनियादारी की मरजीऊँ फरन अणी दनियाँ में खुद पे काबू राकबावाळा, धरमी अन भगती-भावऊँ जीवन जीवा।
ईं वाते आवो, वींका अपमान ने आपणाँ ऊपरे लेन नगर का बारणे वींका नके परा जावा।