5 “एक दाण एक करसाण हो, वो बीज बोवा ने ग्यो। तो कई व्यो बोती दाण थोड़ाक बीज गेला का कनारे पड़या, ज्यो घसरई ग्या, अन उड़बावाळा जीव-जनावर वाँने चुगग्या।
ईसू वाँने बतायो, “हव बीज बोवावाळो मनक को पूत हे।
“थाँ धरती का हाराई मनकाँ का वाते लूण हो, पण यद्याँ लूण को हवाद बगड़ जावे तो वो पाछो खारो ने बणायो जा सके हे। अन नेई वो कई कामे आवे हे पण वींने फेंक दिदो जावे, जणीऊँ वो मनकाँ का पगाँऊँ गुद्यो जावे।”
कुई मनक गेला का कनारा का जस्यान हे, जटे बीज बोया जावे हे। जद्याँ वीं सन्देसा ने हुणे, तद्याँ फटाकऊँ सेतान आन सन्देसा ने लेन परो जावे।
जद्याँ नगर-नगर का लोग-बाग वाँका नके आरिया अन नरई मनक भेळा वेग्या हा, तो ईसू वाँकाऊँ केणीऊँ आ बाताँ किदी के,
अन थोड़ाक बीज काँकरा में पड़्या, वीं उग्या पण गारो ने मलबाऊँ वीं हूँक ग्या।
आपाँ ज्यो भी बात हूणी हे वणा बात पे आपाँने मन लगाणो छावे, जणीऊँ आपाँ भटकाँ कोयने।