वो गाम, सेर अन वस्ती में कटे भी जातो हो, तो लोग-बाग आपणाँ माँदा मनकाँ ने बजार का चोगान में राक देता अन वींऊँ परातना करता तका केता के, वो आपणाँ गाबा को एक कोर भी वाँके अड़ाबा दे। तो ज्यो भी वीं कोर के अड़ता, वे हंगळा हव वे जाता।
अतराक में ईसू जी क्यो, “मारे कणी हात अड़ायो हे?” तद्याँ हाराई नटबा लागा, तो पतरस अन वाँका हण्डाळ्याँ वाँकाऊँ क्यो, “हो मालिक, थाँने तो भीड़ च्यारूँमेरऊँ गेर मेल्या हे अन हाराई थाँके ऊपरे पड़रिया हे।”
थरप्या तका का कामाँ की वजेऊँ लोग-बाग माँदा मनकाँ ने गेला में लान खुतलियाँ पे हुवाण देता, ताँके जद्याँ भी पतरस अटने निकळे, तो कमुकम वींकी छाया आ माँदा मनकाँ पे पड़ जावे।