यो देकन, वो फरीसी जणी वींने बलायो हो, आपणाँ मन में होचबा लागो, “यद्याँ यो परमेसर का आड़ीऊँ बोलबावाळो वेतो तो जाण लेतो के, वाँ कस्यी अन कूण लुगई हे? के, वा तो पापी लुगई हे।”
ईसू यो हमजन के, “वीं माराऊँ कई पूँछणा छारिया हे।” ईं वाते वणा क्यो, “कई थाँ एक-दूजाऊँ मारी ईं बाताँ का बारा पूँछरिया हो के, ‘थोड़ीक टेम केड़े थाँ मने ने देको अन पछे थोड़ीक टेम में मने देको’?
वो एक दन राते ईसू का नके आन क्यो, “हो गरुजी, माँ जाणा हाँ के, थाँ गरुजी हो अन थाँ परमेसर का आड़ीऊँ खन्दाया तका हो, काँके अस्या परच्या, जी थाँ बतावो हो, यद्याँ परमेसर वाँका हाते ने वेवे, तो वो ने बता सके हे।”