38 अन वींका पाच्छे ऊबी रेन, रोती तकी आपणाँ आसूऊँ वींका पगाँ ने आला करन आपणाँ केसऊँ पोछबा लागी, अन वींका पगाँ के बोका देन अंतर लगाबा लागी।
धन्ने हे वीं ज्यो रोवे हे, काँके परमेसर वाँने सान्ती देई।
तद्याँ परतस बारणे जान घणो रोबा लागो।
धन्ने हो थाँ, जी भूका हो, थाँ धपाया जावो, धन्ने हो थाँ, जो आज रोवो हो, थाँ आगेऊँ आणन्द मनावो।”
अन देको, वणी नगर की एक पापी लुगई यो हुणन के, वी फरीसी का घरे रोटी खारिया हे, तो वाँ धोळा भाटा की सिसी में मेंगा मोल को अंतर लई।
यो देकन, वो फरीसी जणी वींने बलायो हो, आपणाँ मन में होचबा लागो, “यद्याँ यो परमेसर का आड़ीऊँ बोलबावाळो वेतो तो जाण लेतो के, वाँ कस्यी अन कूण लुगई हे? के, वा तो पापी लुगई हे।”
यो लाजर नाम को मांदो मनक वणीस मरियम को भई हो, जणी परबू का पगा पे अंतर नाकन आपणाँ बालऊँ पूँछ्या हा।
होक करो, रोवो, अन दकी वेवो। थाँको दाँत काड़णो दुक में अन थाँकी खुसी उदासी में बदल जावे।