36 पछे कणी फरीसी ईसू की मनवार करन क्यो के, “गरुजी आज रोट्याँ आपणाँ घरीस हे।” तद्याँ ईसू वाँके घरे ग्या अन रोटी खाबा ने बेटा।
जद्याँ ईसू बाताँ करीस रिया हा। तो कणी फरीसी वाँकी मनवार किदी के, “मारे हाते खाणो खाबा ने मारा घरे पधारो।” ईसू वींका घरे जान खाणो खाबा ने बेट्या।
एक दाण आराम का दन फरीसियाँ मूँ कणी खास फरीसी का घरे ईसू खाणो खाबा का वाते ग्या अन वीं मनक वाँने पकड़बा का मोका की वाट नाळरिया हा।
पसे मूँ मनक को पूत खातो-पितो आयो तो, थाँ केरिया हो, ‘देको यो खवगड़्यो अन पीबावाळो मनक हे। अन लगान लेबावाळा अन पाप्याँ को हण्डाळ्यो हे।’
पण परमेसर की अकल के जस्यान चालबावाळा वाँकी अकल ने सई साबत करी।”
अन देको, वणी नगर की एक पापी लुगई यो हुणन के, वी फरीसी का घरे रोटी खारिया हे, तो वाँ धोळा भाटा की सिसी में मेंगा मोल को अंतर लई।