16 ईंपे वीं हाराई मनक दरपग्या अन परमेसर की जे-जेकार करबा लागा के, “आपणाँ बसमें एक मोटा परमेसर का आड़ीऊँ बोलबावाळो परगट व्यो हे।” अन केबा लागा के, “परमेसर आपणाँ लोगाँ की मदत करबा ने आग्या हे।”
अन थने अन थाँरा छोरा-छोरी ने जी थाँरा में हे, धुळा भेळा करी अन थाँरा में भाटा पे भाटा भी ने रबा देई। काँके, थें वणी घड़ी जद्याँ परमेसर थाँरा पे दया किदी ही तो थें ने ओळकी ही।”
ईसू वणाऊँ पूँछ्यो, “कस्यी बाताँ?” वणा ईसू ने क्यो, “हारी बाताँ नासरत का ईसू का बारा में हे, वो अस्यो मनक हो, जणी ज्यो भी क्यो हो अन ज्यो किदो हो अणीऊँ वणी परमेसर अन हाराई लोग-बागाँ का हामे यो बता दिदो के, वो एक मोटो परमेसर का आड़ीऊँ बोलबावाळो हो।
यो देकन, वो फरीसी जणी वींने बलायो हो, आपणाँ मन में होचबा लागो, “यद्याँ यो परमेसर का आड़ीऊँ बोलबावाळो वेतो तो जाण लेतो के, वाँ कस्यी अन कूण लुगई हे? के, वा तो पापी लुगई हे।”
वणा वाँकाऊँ क्यो, “कुई तो थाँने यहुन्नो बतिस्मा देबावाळो केवे हे तो कुई थाँने एलिया अन कुई तो परमेसर का आड़ीऊँ बोलबावाळा मेंऊँ कुई पुराणा जी उट्यो हे।”