5 अन वणा वाँकाऊँ ओरी क्यो, “मूँ, मनक को पूत आराम का दनाँ को भी परबू हे।”
ईसू वाँने यो भी क्यो, “आराम को दन मनकाँ का वाते बणायो ग्यो हे, ने के, मनक आराम का दन का वाते।
तद्याँ एक बादळो आयो अन वाँपे छाग्यो, बादळाऊँ अस्यान सबद निकळ्यो के, “यो मारो लाड़लो पूत हे, ईंकी हुणो।”
वो कई लेबा परमेसर का मन्दर में ग्यो, अन चड़ई तकी रोट्याँ लेन खादी अन आपणाँ हण्डाळ्याँ ने भी दिदी, जणा ने खाणी, याजक ने छोड़न दूजाँ के खाणी हव ने हे।”
अन अस्यो व्यो के, कणी दूजाँ आराम का दन में वीं परातना घर में जान उपदेस देबा लागा अन वटे एक मनक हो, जिंको जीमणो हात रियो तको हो।
मूँ परबू का दन पुवितर आत्मा का काबू में आग्यो अन में दरसावो देक्यो, मने मारा पाच्छे रणभेरी की अवाज हुणई दिदी।