4 वो कई लेबा परमेसर का मन्दर में ग्यो, अन चड़ई तकी रोट्याँ लेन खादी अन आपणाँ हण्डाळ्याँ ने भी दिदी, जणा ने खाणी, याजक ने छोड़न दूजाँ के खाणी हव ने हे।”
वो अन वींका हण्डाळ्याँ परमेसर का मन्दर में ग्या अन चड़ाई तकी रोट्याँ खादी, ज्याँने याजक ने छोड़न कुई दूजाँ ने खाता हा?
अन वणा वाँकाऊँ ओरी क्यो, “मूँ, मनक को पूत आराम का दनाँ को भी परबू हे।”