जदी दूजाँ चेला वाँकाऊँ केबा लागा, “माँ परबू ने देक्याँ हे।” तद्याँ वणी वींकाऊँ क्यो, “जद्याँ तईं मूँ वाँका हाताँ में खीलाँ का निस्याण में आँगळी ने गोड़ूँ अन वाँकी पाँळी में आपणो हात ने गालूँ तद्याँ तईं मूँ विस्वास ने करूँ।”
वो हूळी पे दक भोगन मरिया केड़े पाका सबूत का हाते नरी दाण परगट व्यो, वो जीवतो हे। अन चाळी दनाँ तईं चेला वींने देक्यो अन वो वाँने परमेसर का राज का बारा में बतातो रियो।
पछे जद्याँ आपणी देह का बापू भी आपाँने तापड़े हे अन आपाँ वाँकी इजत करा हा, तो पछे आपाँने आपणाँ आत्मिक बापू का क्या में भी रेणो छावे, जणीऊँ आपाँ जीवता रेवा।
आपाँ वणी जीवन का बचन की बात करा हाँ, ज्यो किंकी भी रचना वेबाऊँ पेल्याई हो, आपाँ ईंने हुण्यो, आपणी आक्याँऊँ देक्यो, ईंपे ध्यान लगायो, अन आपाँ खुद वींके हात अड़ायो।