“वींके मालिक वणीऊँ क्यो, ‘धन हे हव अन विस्वास जोगा दास, थूँ थोड़ा में विस्वास जोगो रियो। मूँ थने नरई चिजाँ को हकदार बणाऊँ। आपणाँ मालिक का घर में जान खुसी मना।’
अन हरेक खेल में हरेक खिलाड़ी हरेक तरियाऊँ खुद ने काबू में राकणो पड़े हे, वीं तो ओ हारोई एक नास वेबावाला मुकट पाबा का वाते करे हे पण आपाँ तो वणी मुकट का वाते करा हा ज्यो कदी कमलाई कोयने।
हो लाड़ला भायाँ, ध्यानऊँ हुणो। कई परमेसर वाँने ने चुण्या ज्यो ईं दनियाँ की देकणी में गरीब हे, जणीऊँ वीं विस्वास का धनी वेजावे अन वीं वणी राज का हकदार बणे, जिंने परमेसर आपणाँऊँ परेम करबावाळा ने देबा को वादो किदो हे।