35 काँके वीं दन धरती का हाराई रेबावाळा लोग-बाग का ऊपरे ईं तरियाऊँ आई।
तद्याँ ओ हुणन चेला ईसुऊँ क्यो, “ओ परबू, अस्यान कटे वेई?” वणा वाँकाऊँ क्यो, “जस्यान लास का नके थाँ हेवळा ने देको हो, वस्यानीस अणा बाताँ ने भी ओळक लेवो।”
“ईं वाते थाँ हेंचेत रो, अस्यो ने वे के, थाँ खाबा-पिबा में अन दनियाँ की चन्ता-फिकर में ने पड़ जावे अन वी दन फंदा का जस्यान थाँका ऊपरे अणाचेत आ जावे।
ईं वाते जागता रो अन हरेक टेम परातना करता रेवो, ताँके थाँ अणा हारी आबावाळी आपतीऊँ बचन अन मूँ मनक का पूत का हामें ऊबा रेवा के जोगा बण सको।”
वाँकाणी एकीस मनकऊँ हंगळा लोगाँ ने बणाया ताँके वे आकी धरती पे रेवे, अन वणीस ते किदो के, वे कटे रेई अन वाँकी उमरकाळ भी ते किदा।
“हूँस्यार रेज्यो! काँके मूँ चोर की जस्यान अणाचेत को आऊँ हूँ। धन्न हे वीं ज्यो जागता रेवे हे, अन आपणाँ गाबा हमाळी राके हे, जणीऊँ वीं उगाड़ा ने रेई अन मनक वाँने नांगा ने देकी।”