21 वणी रिप्यावाळा मनक का टेबुलऊँ जीं चुरा-चुरी अन कवा पड़ता हा। वणीऊँ वो पेट भरबा का वाते तरसतो हो। अटा तईं के, फोड़ा-फुस्याँ ने भी गण्डकड़ा चाटता हा।
वाँकाणी क्यो, “हाँची वाते हे परबू जी, पण गण्डकड़ा भी चुर चार अन हेटाड़ो खावे हे। ज्यो वाँका मालिक का टेबुलऊँ हेठे पड़े हे।”
लुगई वींने जबाव दिदो, “हो परबू जी, गण्डकड़ा भी तो छोरा-छोरी का पड़या तका खाणा का टुका खा लेवे हे।”
अन वटे लाजर नाम को एक गरीब दकी मनक हो, ज्यो फोड़ा-फुस्याऊँ अन दकऊँ भरिया तको हो वींने मनक रिप्यावाळा मनक का घर का बारणा पे छोड़ देता हा।
पसे अस्यान व्यो के, वो गरीब दकी मनक मरग्यो अन हरग-दुत वींने अबराम की गोद में बेवाड़ दिदो। अन पछे वो रिप्यावाळो मनक भी मरियो अन वींने गाड़ दिदो।
जद्याँ वीं खान धापग्या तो ईसू आपणाँ चेलाऊँ क्यो, “परोस्या केड़े बंची तकी रोट्याँ भेळी करो, जणीऊँ एक भी रोटी बेकार ने वेवे।”
ईं टेम तईं माँ तो भूका तरिया हा। फाटा तका गाबा पेरता हा। माकाँ हाते मार-कूट किदी जावे हे अन माँ बेघर हा।
में घणी मेनत किदी हे अन दुक का हाते जीवन जिदो हे। नरी दाण तो मूँ हूँ भी ने सक्यो। अन नरी दाण तो भुको-तरियो भी रियो हूँ, नरी दाण तो ठन्ड में बना गाबा के धूजतो रियो हूँ।