काँके मोटो कूण हे? वो जो जीमण में जीमें हे कन पसे वो जो परुसकारी करे हे? कई वी ने जी जीमण में जीमें हे? पण, मूँ थाँका बचमें वणी परुसकारी करबावाळा दास की तरिया हे।
पण पुवितर सास्तर में लिक्यो हे, “जिंने आक्याँ ने देक्यो अन कान्दड़ा ने हुण्यो। जटा तईं मनकाँ की अकल कदी ने पोंछी अस्यी बाताँ परमेसर वणा मनकाँ का वाते बणई जीं परमेसरऊँ परेम करे हे।”
ईं वाते हो मारा लाड़ला भायाँ, थाँ अणा बाताँ की वाट नाळरिया हो, ईं वाते थाँ पुरी कोसीस करो के, परमेसर की नजरा में खरा, बना दोस का अन सान्तीऊँ रेबावाळो केवावो।
जद्याँ मूँ अस्यान बोलरियो हो के, तद्याँ हरगऊँ आ अवाज हुणई, “ईंने लिकी ले। ज्यो परबू की सेवा करता करता मरे हे वीं धन्न हे।” आत्मा केवे हे के, “वीं आपणाँ कामाँऊँ आराम पाई, अन वाँका काम वाँके हाते हे।”
“हूँस्यार रेज्यो! काँके मूँ चोर की जस्यान अणाचेत को आऊँ हूँ। धन्न हे वीं ज्यो जागता रेवे हे, अन आपणाँ गाबा हमाळी राके हे, जणीऊँ वीं उगाड़ा ने रेई अन मनक वाँने नांगा ने देकी।”
काँके ज्यो उन्यो गादी का बचमें में हे वो वाँकी रुकाळी करी। अन वो वाँने जीवन देबावाळा पाणी की सोता का नके लेन जाई अन परमेसर वाँकी आक्याँ का हाराई आसूँ पुछ देई।”