28 ईं वाते यद्याँ परमेसर काकड़ का फुल ने जी आज हे अन ज्याँने काले बाळ दिदा जाई। वाँने अस्यो पेरावो पेरावे हे, तो हो कम विस्वासवाळा मनकाँ, वीं थाँकी देक-रेक काँ ने करी?
ईसू वाँने क्यो, “थाँका कम विस्वास की वजेऊँ। मूँ थाँकाऊँ हाचेई केवूँ हूँ, यद्याँ थाँको विस्वास हरूँ का दाणा का जतरोक भी वेतो, तो ईं मंगराऊँ केता के, ‘अटूऊँ हरकन वटे जातो रे, तो वो जातो रेई।’ कुई बात थाँका वाते अबकी ने वेई।
ईं वाते जद्याँ परमेसर छापेड़ा की चुंटी ने, ज्यो अबाणू हे, अन काले वादी में बाळी जई, वींने अतरी हव बणावे हे, तो हो कम विस्वासवाळा, कई थाँने हव गाबा ने पेराई?
अन वणा वाँकाऊँ क्यो, “थाँको विस्वास कटे हो?” पण वीं दरपग्या अन अचम्बा में आग्या अन एक-दूजाऊँ केबा लागा, “ईं कूण हे? ज्यो डूँज अन पाणी ने भी आग्या देवे हे, अन वी अणाको केणो माने हे।”
काँके वाँ जगाँ काँटा अन चारो पेदा करे हे तो बेकार हे अन वींने हराप दिदो जाबावाळो हे। आकरी में वींने बाळ दिदी जावे हे। पण परमेसर वीं जगाँ ने आसीस देवे हे ज्या बरका का पाणी ने सोक लेवे हे अन हाकबावाळा करसाण का नफा का वाते हव हाक पेदा करे हे।
काँके सास्तर में भी लिक्यो तको हे के, “हाराई मनक चारा के जस्यान हे, अन वाँको सजणो अन धजणो भी काकड़ का फुल का जस्यान हे। चारो हूक जावे हे अन फुल जड़ जावे हे।