23 काँके खाणाऊँ जीव अन कपड़ाऊँ सरीर घणो खास हे।
पसे ईसू आपणाँ चेलाऊँ क्यो, ईं वाते मूँ थाँकाऊँ केवूँ हूँ के, आपणाँ जीव की चन्ता-फिकर मती करज्यो के, “आपाँ कई खावा? आपाँ कई पेरो?
कागला पे ज्यान दो के, वी ने तो कई बावे हे, अन ने काटे हे अन ने वाँका नके बकारिया वेवे हे, तुई परमेसर वाँने पाळे हे। पण थाँको मोल तो जीव-जनावराऊँ घणो हेलो हे।
जद्याँ वे रोट्याँ खान धापग्या, तो जाँज ने हलको करबा वाते गऊँ फेंक दिदा।