40 ओ बना अकलवाळा, जणी बारणे को भाग बणायो हे, कई वणी मयने को भाग ने बणायो?
हो आन्दा वेण्डा मनकाँ, कूण मोटो हे, होनो कन वो मन्दर जीऊँ होनो पुवितर वेवे हे?
हो आंदा फरीसियाँ! पेल्याँ प्याला अन थाळयाँ ने मयनेऊँ मांजो, ताँके वीं बारणेऊँ भी साप नजरे आवे।
पण, परमेसर वणीऊँ क्यो, ‘ए वेण्डा मनक, अणी रातेईस थूँ मर जाई। जो कई भी थें भेळो किदो हे। वो किंको रेई?’
तद्याँ ईसू वाँने क्यो, “ओ बना अकल का अन परमेसर का आड़ीऊँ बोलबावाळा की बाताँ पे भरोसो ने करबावाळा मनकाँ।
थाँ तो बेण्डा हो। थाँ ओ जाणो हो के, जद्याँ थाँ बीज वायो हो वो बीज जद्याँ तईं मरी ने जावे जीवतो ने वेवे हे।
पछे जद्याँ आपणी देह का बापू भी आपाँने तापड़े हे अन आपाँ वाँकी इजत करा हा, तो पछे आपाँने आपणाँ आत्मिक बापू का क्या में भी रेणो छावे, जणीऊँ आपाँ जीवता रेवा।