35 ईं वाते ध्यान दो के, ज्यो उजितो थाँकामें हे। वो अंदारो ने वे जावे।
“देह को दिवो आँक हे, ईं वाते यद्याँ थाँकी आक्याँ नरोगी हे, तो थाँको हारी देह भी उजिता वाळी रेई।
थाँरा देह को दिवो थारी आक्याँ हे, अणी वाते यद्याँ थारी आक्याँ साप हे तो पुरी देह उजिताऊँ भरी तकी हे। पण, यद्याँ ईं बुरी हे, तो थारी देह अन्दारावाळी वे जाई।
ईं वाते यद्याँ थाँकी आकी देह उजितो हे अन वींको कस्यो भी भाग अन्दारावाळो ने रेवे, तो आकी देह अस्यो उजितो देई, जस्यान दिवो हगलती दाण आपणी चमकऊँ थाँने उजितो देवे हे।”
वीं खुद ने हमजदार बतान मुरक बणग्या।
पण जणामें ईं बाताँ ने हे वो आंदो हे अन वींने धुधळो दिके हे, वो ओ भी भुलग्यो हे के, वींका पाप पेल्याँई धोया ग्या हा।
ईं मनक बेकार में मेपणा की बाताँ करन कुकरम की कामाँ के वजेऊँ वणा मनकाँ ने जीं अबे भटक्या तका मनक मेंऊँ निकाळणो छारियो हे वाँने देह की मनसा में फसा लेवे हे।
काँके थूँ केवे हे के, ‘मूँ रिप्यावाळो बणग्यो हूँ मने किंकीई जरूत कोयने,’ पण मने पतो हे थूँ नीच, बना दया को, कंगाळ, आन्दो अन नांगो हे।