6 जद्याँ वणी घर में कूण हव मनक वेई, तो थाँकी सान्ती वींने मली। ने वेई तो थाँकी सान्ती थाँका नके पाच्छी आ जाई।
जणी घर में जावो। पेली केज्यो, ‘अणी घर में सान्ती मले।’
वणी घर मेंईस रेवो अन जो कई वटूँ मले, वोईस खावो-पीवो, काँके दानक्याँ ने आपणी दानकी मलणी छावे। घर-घर मती फरज्यो।
कुई थाँने फोगट की बाताँऊँ धोको ने दे, काँके ईं कामाँ का मस परमेसर की रीस वींकी आग्या ने, ने मानबावाळा पे भड़के हे।
परबू थाँका हाराई का हाते रेवे अन परबू ज्यो खुद ईं सान्ती हरेक टेम अन हरेक तरियाऊँ देता रेवे हे थाँने हमेस्यान सान्ती देवे।
अन जो मेल-मिलाप करावे हे, वीं सान्ती का बीज बोवे हे अन धारमिकता को फळ पावे हे।
आग्या मानबावाळा बाळक के जस्यान रेवो। पेल्याँ थाँकामें ज्या बुरी मरजी ही, वींके जस्यान मती रो, काँके तद्याँ थाँ बना ग्यान का हा।