15 काँके वो परबू परमेसर की देकणी में मोटो वेई। वो दाकरस अन दारू कदी ने पीई। वो आपणी माँ की कोख मेंईस पुवितर आत्माऊँ भर जाई।
जणीऊँ थूँ राजी अन खुस वेई अन नरई लोग-बाग वींका जनमऊँ आणन्द मनाई।
मूँ थाँकाऊँ केवूँ हूँ के, ज्यो लुगायाऊँ जनम्याँ हे, वाँका मूँ यहुन्नाऊँ मोटो कुई भी ने हे, पण परमेसर का राज को फोराऊँ फोरा मनक भी वणीऊँ मोटो हे।”
काँके यहुन्नो बतिस्मा देबावाळो ने तो रोटी खातो हो अन नेई अंगूरा को रस पितो हो, अन थाँ केवो हो के, ‘वींमें हुगली आत्मा हे।’
यहुन्नो तो वीं दिवा का जस्यान हो ज्यो बळतो अन उजितो देतो रेवे हे अन थाँ वींका उजिता को थोड़ाक टेम तईं मजो लेणा छावता हा।
वीं हाराई जणा पुवितर आत्माऊँ भरग्या अन जस्यान पुवितर आत्मा की सामरत वाँने मली वीं तरे-तरे की बोली में बोलबा लागा।
पण परमेसर जणा मने मारी माँ का पेट मूँईस मने चुण्यो अन आपणाँ मेमा में मने बला लिदो,
दारुँड़ीया मती बणो, काँके ईंऊँ नागाईपणो वेवे हे, पण आत्माऊँ भर जावो।