31 माँ जाणा हाँ के, परमेसर पाप करबावाला की ने हुणे, पण यद्याँ कुई परमेसर को भगत वे अन वाँकी मरजी में चालतो वे, तो वो वाँकी हुणे हे।
अन मूँ अबाणू भी मूँ जाणूँ हूँ के, ज्यो कई थाँ परमेसरऊँ मांगो, परमेसर थाँने वो दी देई।”
थाँ मने ने चुण्यो पण में थाँने चुण्या हे अन थाँने ठेराया हे के, थाँ अस्या फळ-फळो जीं हमेस्या बण्या रेवे। तद्याँ थाँ मारा नामऊँ ज्यो कई बापऊँ मांगो, वो थाँने दे।
ईसू वाँने क्यो, “मारो खाणो ओ हे के, मूँ मने खन्दाबावाळा की मरजी पे चालूँ अन वींको काम पूरो करूँ, ज्यो वणी मने हुप्यो हे।
यद्याँ कुई वींकी मरजी पे चालणो छावे, तो वीं खुद ईं हिकऊँ जाण जाई के, या हिक परमेसर का आड़ीऊँ हे कन मारा आड़ीऊँ हे।
वणी वाँने क्यो, “आ तो अचम्बा की बात हे के, थाँ वींने ने जाणो हो के, वो कटा को हे, तो भी वणी मारी आक्याँ खोल दिदी।
ईं जगत का सरुवातऊँ यो कदी हुणबा में ने आयो के, कणी जनम का आंदा मनक की आक्याँ खोली वेवे।
तद्याँ में क्यो के, ‘किताब में मारा वाते जस्यान लिक्यो हे वस्यान, मूँ अटे हूँ। अन हो परमेसर, थाँकी मरजी ने पुरी करबा ने आया हूँ।’”