काँके अणा मनकाँ को मन गाटो वेग्यो हे, अणा वाँने कान्दड़ाऊँ हूणाणो बन्द वेग्यो अन वाँकाणी आपणी आक्याँ बन्द कर लिदी हे। ताँके कटे अस्यान ने वे जावे के, वाँकी आक्याँ देकती, कान्दड़ा हूणता, अन वाँका मनऊँ हमजता जणीऊँ वीं आपणाँ मन ने पापऊँ फेरन मारा नके आता अन मूँ वाँने बंचाऊँ।’”
पण देह को मनक परमेसर की आत्मा की बाताँ गरण ने करे, काँके वीं बाताँ वींकी देकणी में बेण्डापणा की बाताँ हे अन ने वो वाँने जाण सके हे काँके वाँ बाताँ की परक आत्मिक रितऊँ वेवे हे।
हो भूण्डा मनकाँ, मूँ थाँने ईं वाते लिकूँ हूँ, काँके थाँ परमेसर ने जाण लिदा हे, जीं सरुवातऊँ हे। हो मोठ्याराँ, मूँ थाँने ईं वाते लिकूँ हूँ, काँके थाँ जोरावर हो, थाँ परबू का बचन ने मानो हो अन बुरई ने भी छेटी कररिया हो।