ईं वाते थें जान ईंको अरत सास्तरा में कई हे वींने हमजो, ‘मूँ बली ने छावूँ हूँ, पण दया-भाव छावूँ हूँ।’ मूँ धरमिया कोयने, पण पापी मनकाँ ने बलावा आयो हूँ।”
काँके जद्याँ आपाँ परमेसर का दसमण हा। तो परमेसर आपणाँ बेटा की मोतऊँ आपणो मेल-मिलाप खुदऊँ किदो। अन जद्याँ अबे आपणाँ मेल-मिलाप वेग्यो हे तो वाँका जीवनऊँ आपाँ काँ ने बंचाया जावा?
पण आपाँ यो देकाँ हा के, वीं ईसू जाँने थोड़ीक टेम का वाते हरग-दुताऊँ रेटे कर नाक्या हा, अबे वींने मेमा अन आदर को मुकट पेरायो ग्यो हे, काँके वणी मोत को दुक जेल्यो हे। ताँके परमेसर की करपाऊँ हरेक मनक का वाते मोत को हवाद चाके।