काँकरा वाळी जगाँ का बीज वणा मनकाँ का जस्यान हे के, जद्याँ वी हुणे, तो वी आणन्द का हाते परमेसर की वाणी ने माने हे। पण वीं जड़ ने पकड़वा का मस थोड़ीक दाण विस्वास करे हे अन परक की दाण वी भाग जावे हे।
वो एक दन राते ईसू का नके आन क्यो, “हो गरुजी, माँ जाणा हाँ के, थाँ गरुजी हो अन थाँ परमेसर का आड़ीऊँ खन्दाया तका हो, काँके अस्या परच्या, जी थाँ बतावो हो, यद्याँ परमेसर वाँका हाते ने वेवे, तो वो ने बता सके हे।”
पण मारा नके एक ओरी गवा हे जिंकी गवई यहुन्ना की गवईऊँ मोटी हे काँके परमेसर ज्यो काम पूरो करबा के वाते मने हुप्यो हे, मूँ वाँका काम ने कररियो हूँ अन वीं कामइस मारी गवई हे के, परमेसर मने खन्दायो हे।
पछे भी वीं भीड़ मेंऊँ घणा लोग-बाग वींपे विस्वास किदो अन केबा लागा के, “जद्याँ मसी आई तो वो जतरा परच्या अणी बताया हे अणीऊँ हेला ने बताई, कई वो अस्यान करी?”