41 वीं जगाँ पे जटे ईसू हूळी पे चडाया ग्या हा। वींका नकेईस एक बाग हो अन वीं बाग में एक भाटा में खोदी तकी नुवी कबर ही। जिंमें कदी भी कणी लास ने राकी ही।
अन वाँने आपणी नुई कबर में मेली, ज्यो वणी मोटी छाट में बणई ही, अन कबर का बाणा पे मोटो भाटो आड़ो देन परोग्यो।
वो लास ने हूळीऊँ उतारन एक हव धोळा चादरा में पळेटी अन मंगरा में छाट पे खोदी तकी एक कबर में मेल दिदी। वीं कबर में पेल्याँ किंने भी ने गाड़्यो ग्यो हो।
काँके सबद को दन सरू वेबावाळो हो, अन वाँ कबर भी नकेईस ही, तो वणा ईसू की लास वींमें मेल दिदी।
ईसू वींने क्यो, “ए लुगई, थूँ काँ रोवे हे? किंने होदरी हे?” वाँ वींने माळी हमजन क्यो, “ओ बासा, थाँ वींने लेग्या वो तो मने बतावो के, वींने कटे मेल राक्यो हे। ताँके मूँ वींने ले जवूँ।”