अन परमेसर का आड़ीऊँ थाँ ईसू मसी में हो, मसी ज्यो परमेसर का आड़ीऊँ आपणाँ वाते ग्यान ठेरियो अन वींका वजेऊँ आपाँ परमेसर का हामे सई अन पुवितर मनक बण्या अन आपाँने छुटकारो मल्यो।
काँके जद्याँ बकरा अन पाडा का लुई अन पाडी की भभूत वाँका पे छाटी जावे, ज्यो रिति-रिवाज का जस्यान असुद ने सुद बणावे हे, ताँके वीं देह का हस्याबूँ सुद वे सके।
वो पाणी भी बतिस्मा का जस्यान हे, जणीऊँ अबे थाँ बंचाया जावो हो। अणी बतिस्मा को मतलब यो कोयने के, देह को मेल धोयो जावे, पण मन ने पुवितर करन खुद ने परमेसर का आड़ी फेरणो वेवे हे, काँके ईसू मसी मरिया तका मेंऊँ पाच्छा जीवता किदा ग्या हा।
ईसू मसीइस हे, ज्यो आपणाँ नके पाणी को बतिस्मो लेबा अन आपणो लुई वेवाड़ ने आया, वीं खाली पाणी को बतिस्मो लेबा वाते ने आया, पण वो पाणी को बतिस्मो लेबा अन आपणो लुई वेवाड़ का वाते आया हाँ अन अणी बात की गवई परमेसर की आत्मा खुद देवे हे, काँके आत्माइस हाँची हे।
में वणीऊँ क्यो, “हे मालिक, थाँ तो जाणोई हो।” तो वणा माराऊँ क्यो, “ईं वीं मनक हे जी कळेस जेलन आया हे अन अणा आपणाँ गाबा ने उन्याँ का लुईऊँ धोन धोळा किदा हे।