ईंका केड़े परमेसर का मन्दर ने जो हरग में हे वींने खोल्यो ग्यो, अन वीं मन्दर में मने वादा वाळी पेटी दिकई दिदी। वींके केड़े विजळी चकमवा लागी अन कड़कवा की अवाज हुणई देबा लागी अन वादळा गाजबा लाग्यो, अन भूकम आबा लागो अन गड़ा पड़बा लागा।
अन मने हरगऊँ जोरकी अवाज हुणई दिदी वा अवाज वेता तका जरणा का अन बिजळी का कड़कवा का जस्यान की ही, ज्या अवाज में हूणी, वाँ मानो, घणा जणा रणभेरी बजाबावाळा का जस्यान की ही।
में देक्यो के, वणी उन्ये वणा हात मोराँ मेंऊँ एक मोर खोली। तो वाँ च्यार जीवता जीव मेंऊँ एक ने में वादळा की गाजबा की अवाज का जस्यान ओ केतो तको हुण्यो, “आ।”