मनक का पूत ने तो मरणोइस हे, जस्यान वाँका वाते लिक्यो हे, पण ज्यो मनक का पूत ने पकड़ाई, वींका वाँते घणी दुक बात वेई। वीं मनक के वाते आ बात घणी हव वेती, जदी वो जनमई ने लेतो।”
अन तद्याँ ईसू बतिस्मो लिदो अन जस्यानी वो पाणीऊँ बारणे आयो तो आकास खुलग्यो अन वणी परमेसर की आत्माने एक परेवड़ा का जस्यान रेटे उतरती अन आपणाँ माता पे आती देकी।
ईसू वींकी बात हुणन क्यो, “हिवाळ्या के, तो खोकल वेवे हे अन आकास का जनावराँ का वाते गवाळा वेवे हे पण मनक का पूत का वाते मातो ढाँकबा का वाते भी जगाँ ने हे।”
ईसू वींने क्यो, “में ज्यो थने क्यो के, में थने अंजीर का रूँकड़ा के रेटे देक्यो, कई थूँ ईं बात की वजेऊँ विस्वास करे हे? तो थूँ आगे भी अणीऊँ मोटा-मोटा काम देकी।”
मूँ थाँराऊँ सई-सई केवूँ हूँ, जद्याँ थूँ मोट्यार हो। तो जटे जाणो छातो हो, वटे जातो। पण, जदी थूँ डोकरो वेई। तो आपणाँ हात ऊँचा केरी अन दूज्यो थने बाँदन जटे थूँ ने जई वटे ले जई।”
कुई ने नट सके के, आपणाँ धरम को भेद कस्यो मोटा हे, वो ज्यो मनक का रूप में परगट व्यो, पुवितर आत्मा जिंने धरमी बतायो, अन हरग-दुत जिंने देक्यो, देसा देसा में वींको परच्यार करियो ग्यो, दनियाँ में वींपे विस्वास करियो ग्यो, अन मेमावान हरग में उठा लिदो ग्यो।
तद्याँ में हरग ने खुल्यो देक्यो अन वटे कई देकूँ हूँ के, एक धोळो घोड़ा हे। अन वींके ऊपरे ज्या सवार हे वो विस्वास जोगो अन हाँचो हे, काँके वो हाँच का हाते न्याव को फेसलो अन लड़ई करतो हो।
ईंका केड़े में देक्यो के हरग को बारणो खुल्यो हे अन वाँ अवाज जो मने पेल्याँ हुणई दिदी ही, रणभेरी की अवाज में बोलरी ही के, “ऊपरे अई जा, मूँ थने वीं बाताँ बताऊँ जीं आबावाळा टेम में पकी वेबावाळी हे।”