“मूँ थाँने सान्ती देन जारियो हूँ, आपणी खुद की सान्ती थाँने देवूँ हूँ। दनियाँ देवे हे वस्यान मूँ थाँने ने देवूँ हूँ। थाँको मन दकी ने वेवे अन ने थाँ दरपे।
हो भायाँ, मूँ मनक का रिति-रिवाजऊँ केवूँ, यद्याँ दो मनकाँ का बचमें कस्यी बात पाकी वे जावे, तो वींने ने कुई टाळ सके अन ने वींमें कई कम कर सके अन ने बड़ा सके हे।