15 जतरा मोत की दरपणी में पूरा जीवन में गुलाम हे, वाँने छूड़ई ले।
काँके ज्या आत्मा थाँने दिदी हे, वाँ थाँने पाच्छा दास बणाबा का वाते ने अन नेई दरपवा का वाते हे, पण वाँ आपाँने वींकी ओलाद बणाबा का वाते हे, जणीऊँ आपाँ “ओ बापू, ओ पापाँ” केन बलावा हा।
के, यो भी आपणाँ नास वेबाऊँ छुटकारो पान परमेसर की ओलाद की मेमामय आजादी में पांतीदार वे।
अन वणाईस माँने भी खतरनाक मोतऊँ बंचाया हा अन आगे भी बंचाता रेई, काँके माँ वींपेईस आस लगा मेली हे, वींइस माँने आगे भी बंचाई।
मूसा का नेमाँ का क्या में रेवणा छारिया हे वाँकाऊँ मूँ पूँछणो छारियो हूँ के, कई थाँ नेमाँ की बाताँ ने हूणी हे?
काँके परमेसर आपाँने दरपणी के बजाय तागत, परेम अन खुद ने बंस में राकबा की आत्मा दिदी हे।
काँके हाँची में वो हरग-दुताँ की मदत ने करे हे, पण अबराम का बंस की करे हे।