जद्याँ कुई मारा अन मारी हिकऊँ, कुकरमी अन पापी जमानाऊँ हरमाई तो मूँ ज्यो मनक को पूत(ईसू) हूँ, जद्याँ पुवितर हरग-दुताँ की लारे परमेसर की मेमा में आऊँ, तो वींका वाते हरमाऊँ।”
ज्यो कुई माराऊँ अन मारी बाताँऊँ लाजा मरी तो जद्याँ मूँ, मनक को पूत आपणी अन बापू परमेसर की अन पुवितर हरग-दुताँ की मेमा में पाछो आऊँ तो मूँ भी वाँकाऊँ मुण्डो फेर लेऊँ।
हो बापू, मारी या अरज हे के, वीं हाराई एक वेवे, जस्यान मूँ थाँकामें हूँ अन थाँ मारा में हो, वस्यानीस वीं भी आपाँ में एक वेवे, जणीऊँ दनियाँ विस्वास करे के, थाँ मने खन्दायो हे।
ईसू वींने क्यो, “मारे हात मती लगा, काँके मूँ अबाणू बाप का नके ने ग्यो हूँ। पण, मारा भायाँ का नके जान वाँने के दे के, ‘मूँ मारा बाप अन थाँका बाप अन मारा परमेसर अन थाँका परमेसर का नके ऊपरे जारियो हूँ।’ ”
पण वीं तो बड़िया नगर में जाबा की मरजी राके हे, ज्यो हरग हे। ईं वाते वीं परमेसर ने आपणाँ परमेसर केबाऊँ हरम कोनी करे, काँके वणी वाँका वाते एक नगर त्यार करन मेल्यो हे।