“ईं वाते मूँ थाँने केवूँ हूँ के, आपणाँ जीव का वाते यो होच मती करज्यो के, आपाँ कई खावा, कई पिबा, अन ने आपणी देह के वाते के, कई पेरा। कई जीव खाणाऊँ अन देह गाबाऊँ खास कोनी?
अन ज्यो बीज झाड़क्याँ में पड़्या वी वणी मनक का जस्यान हे, जी बचन माने तो हे, पण वीं चन्ता-फिकर अन मो-माया अन जीवन का भोग-विलास में दब जावे हे अन वाँके फळ भी ने पाके हे।
पण में ज्यो लिक्यो हो वो ओ हे के, कणी अस्या मनकऊँ वेवार मती राको ज्यो आपणाँ खुद ने मसी को विस्वासी केन भी कुकरमी, लोबी, मूरत्याँ पूजबावाळो, जूटी खबर देबावाळो, पीबावाळो, अन ठग वेवे। अस्या मनकाँ का हाते थाँ खाणो भी मती खावो।
थाँने ओ जाणणो हे के, कुकरमी, हूँगला मनक, अन लोबी मनक ज्यो मूरत पुजा करबावाळा का जस्यान हे अस्या मनकाँ का वाते मसी अन परमेसर का राज में बापोती कोयने हे।
अणा मनक का वाते यो हराप वेई अन ईं केन के जस्यान वींके गेले चाले हे अन ईं बिलाम के जस्यान धन कमावा का वाते वींके जस्यान गलती करे हे। ईं वाते जस्यान कोरह का हाते जीं मनक विरोद कररिया हा, वाँको नास वेग्यो हे वस्यानीस अणाको भी नास वेई।