कुई ने नट सके के, आपणाँ धरम को भेद कस्यो मोटा हे, वो ज्यो मनक का रूप में परगट व्यो, पुवितर आत्मा जिंने धरमी बतायो, अन हरग-दुत जिंने देक्यो, देसा देसा में वींको परच्यार करियो ग्यो, दनियाँ में वींपे विस्वास करियो ग्यो, अन मेमावान हरग में उठा लिदो ग्यो।
काँके पेल्याँई के दिदो हे के, वो भेंट अन चडावो होम बली अन पापबली ने छायो अन ने वो अणाऊँ राजी वेवे हे। जद्याँ के सास्तर का नेम का हस्याबूँ तो ईं हाराई चडाया जावे हे।
ईसू अणी धरती का जीवन में ज्यो वींने बंचा सकतो हो, वणीऊँ जोरऊँ हाको करतो तको अन रोते तके अरज अन परातना किदी ही अन नमरता अन भगती का मस वींकी हुण लिदी गी ही।
हरेक मायाजक ने ईं वाते चुण्यो जावे हे के, वो भेंट अन बली दुई चड़ावे। अन ईं वाते अणी मायाजक का वाते भी ओ जरूरी हे के, वींका नके भी चड़ाबा का वाते कई वेवे।
ईं दनियाँ में नरई भटकाबावाळा मनक हे। अन ज्यो भी मनक ईं बात ने, ने माने के, ईसू मसी ईं धरती पे मनक का रूप में आया। अस्या मनक धोको देबावाळा अन मसी का दसमण हे।