“ओ कपटी मूसा का नेमा ने हिकाबावाळा अन फरीसियाँ, थाँने धिकार हे! थाँ एक जणा ने आपणाँ आड़ी लाबा का वाते रात-दन एक कर देवो हो। जद्याँ वो थाँका आड़ी आ जावे हे तो वींने आपणाँऊँ हेलो हुगलो बणा देवो हो।
अस्यान लागरिया हो के, थाँ तो धापग्या हो अन थाँ रिप्यावाळा वेग्या हो! कई थाँ माँके बना राज किदो हे? पण भलो वेतो के, थाँ राज करता, तो माँ भी थाँका हाते राज करता।
पण मने दरपणी लागे हे, काँके कदी अस्यान ने वेजा के, जस्यान धरती की पेली लुगई ज्या हवा ही, वींने हाँप आपणी चालऊँ भटका दिदी ही, वस्यानीस ईं थाँका मन भी मसी की भगतीऊँ अन पवितरताऊँ ज्यो आपाँने मसी का वाते राकणी छावे, वणीऊँ भटका ने दिदो जावे।
ईं मनक बेकार में मेपणा की बाताँ करन कुकरम की कामाँ के वजेऊँ वणा मनकाँ ने जीं अबे भटक्या तका मनक मेंऊँ निकाळणो छारियो हे वाँने देह की मनसा में फसा लेवे हे।