“हो कपटी, मूसा का नेमा ने हिकाबावाळा अन फरीसियाँ, थाँने धिकार हे! थें तो प्याला अन थाळयाँ ने उपरे-उपरेऊँ तो मांजो हो पण वीं मयनेऊँ कपट अन हवारतऊँ भरी तकी हे।
अन वणीऊँ क्यो, “हाराई तो पेल्याँ हव अंगूरा को रस परुसे हे अन जद्याँ पावणा घणा पीन धाप जावे हे। तो वाँने, हलको अंगूरा को रस देवे हे, पण थाँ हव रस अबाणू तईं राक मेल्यो हे।”
तो काँ ने आपाँ भी वणी तरियाऊँ रेवा, जस्यान मनक दन का उजिता में रेवे हे। ने तो खा-पीन धुत रेबावाळा का जस्यान, ने कुकरम, लुचापणा करबावाळा की तरियाँ अन ने लड़बावाळा का जस्यान अन ने रिस्याँ बळबावाळा का जस्यान।
पण में ज्यो लिक्यो हो वो ओ हे के, कणी अस्या मनकऊँ वेवार मती राको ज्यो आपणाँ खुद ने मसी को विस्वासी केन भी कुकरमी, लोबी, मूरत्याँ पूजबावाळो, जूटी खबर देबावाळो, पीबावाळो, अन ठग वेवे। अस्या मनकाँ का हाते थाँ खाणो भी मती खावो।
परदानाँ ने जिमेदारी तद्याँईस हूँपी जावे, जद्याँ वीं निरदोस वेवे अन वाँके एकीस लुगई वे, वाँका बाळक विस्वासी वेवे अन बुरा काम करबावाळा ने वेवे अन आग्या ने मानबावाळा में वाँको नाम ने वेवे।