18 ओ लुगायाँ, आपणाँ-आपणाँ धणी का केवाँ में रो। काँके परबू में ओ सई हे।
पतरस अन थरप्या तका जबाव दिदो, “आपणाँ ने मनकाँ की ने, पण परमेसर की आग्या मानणी छावे।
पण मूँ छावूँ हूँ के, थाँ ओ जाण लो के, लुगई को मातो वींको धणी हे, मनक को मातो मसी हे अन मसी को मातो परमेसर हे।
लुगायाँ ने विस्वास्याँ की मण्डळ्याँ में छानो रेणो छावे, काँके वाँने बोलबा को अदिकार कोयने, पण वाँने अदीन रेणो छावे, जस्यान मूसा का नेमा में लिक्यो ग्यो हे।
ओ लुगायाँ, आपणाँ-आपणाँ धणी का केवाँ में रेवो जस्यान परबू का।
थाँ तो परमेसर का मनक हो, ईं वाते थाँकामें कुकरम, कणी तरिया का हूँगला काम अन लोब-लाळच अस्सी बाताँ का बात-बच्यार भी थाँका बचमें ने वेणो छावे।
काँके उजाळा को फळ हाराई तरियाँ की भलई, ज्यो परमेसर छावे वो करणो अन हाँच हे।
मूँ केवूँ हूँ, लुगायाँ आपणाँ धणी ने तो उपदेस देवे अन ने वींपे पे हक जमावे, पण छानी-मानी रेवे।